: धनेश कुमार द्विवेदी
क्यूँ रोज तिरंगे में लिपटी
मुझको तश्वीर दिखाते हो
भरा खून से लाल मुझे
मेरा कश्मीर दिखाते हो
मैं भारत की माटी हूँ
बहकाओगे मुझको कब तक
मुझको घायल करने वालों से
हाथ मिलाओगे कब तक
जन गण मन की भाषा को
तुम निर्लज्ज नहीं समझ पाते
इससे तो मैं बाँझ भली
पैदा होते ही मर जाते
लाल किले की प्राचीर से
फिर झंडा फहरायेंगे
अपनी झूठ थोथी बातें
बार-बार दोहरायेंगे
घात लगाए बैठे हैं
सिंहासन कैसे पाना है
सत्ता हासिल होते ही
फिर मूक बधिर बन जाना है
जब वीर सपूतों को दुश्मन
सीमा पर नींद सुलाता है
यही नपुंसक सिंहासन
गिरगिट के रंग दिखाता है
भोली भाली जनता को
कब तक यूँ ही बहलाओगे
क्या समय कभी वो आएगा
जब माँ का कर्ज चुकाओगे ।