कविताएं

वह गरीब लड़की

 

निशा चतुर्वेदी

 

रोज सवेरे वह लड़की

मैले-कुचैले कपड़े पहने

कागज, पन्नियाँ बीनने आती

हर रद्दी कागज, पन्नियों में

वह कुछ ना कुछ तो पाती

फिर उठा उसे थैले में डालकर

यूँ आगे निकल है जाती

रोज सवेरे होते ही वह

यही क्रम है दोहराती

कागज, पन्नियों में जो भी मिलता

उसे देख खुश हो जाती

आज की रोटी मिल जायेगी

यही सोचकर इतराती

जिस दिन ज्यादा कागज, पन्नियाँ बीनती

चैन की नींद है सोती

उसके सपने भी हैं ऊँचे

मगर गरीबी है उसकी मजबूरी

जिसके द्वार खड़ी होती वह

दुत्कारी जाती, भगाई जाती

मगर किसी के द्वार पर

बासी रोटी, पानी मिलने पर ही

यही ढेरों दुआएँ दे जाती

यही ढेरों दुआएँ दे जाती....।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

युवाओं वर्ग से अपेक्षा

युवाओं वर्ग से अपेक्षा


विष्णु कुमार शर्मा 'कुमार' साभार


बहुत जरूरत भारत मां को, ऐसे वीर जवानों की ।

जिम्मेदारी निभा सकें जो प्रगतिशील अभियानों की ।।

 

व्यसन मुक्त हो देश हमारा, रोग-शोक से दूर रहें ।

पवन सुगंधित बहे चतुर्दिक, नदियां  शुचितापूर्ण बहें ।

युवा हमें श्रमशील चाहिए, गति मोड तूफानों की ।

जिम्मेदारी निभा सके जो, प्रगतिशील अभियानों की।।

 

सज्जन शालीन युवा भारत के, दुतगति से बढ़ते जाएं ।

जब तक मिले न लक्ष्य सुनिश्चित, तब तक श्रम करते जाएं।।

नए सृजन हित बहुत जरूरी, साधक  प्रति भावनाओं की ।

जिम्मेदारी निभा सके जो, प्रगतिशील अभियानों की।।

 

जिसमें हो बल-वीर्य पराक्रम, अनुशासित-मर्यादित हों ।

अगुवाई को आगे आएं, नियमों से संचालित हों ।।

सृजनशील अभियान चलाएं, ऐसे निष्ठावानों की ।

जिम्मेदारी निभा सके जो, प्रगतिशील अभियानों की।। 

 

युवकों ने ही क्रांति मचाई, युवकों  ने निर्माण किया ।

अनाचार कर दूर लोकहित, युवकों ने बलिदान दिया ।।

प्रतिभा सहित जरूरत युग को, चरित्रनिष्ठ  धनवानों की।

जिम्मेदारी निभा सके जो, प्रगतिशील अभियानों की ।।

 

मैं भारत की माटी हूँ

: धनेश कुमार द्विवेदी

 

क्यूँ रोज तिरंगे में लिपटी

मुझको तश्वीर दिखाते हो 

भरा खून से लाल मुझे 

मेरा कश्मीर दिखाते हो

मैं भारत की माटी हूँ 

बहकाओगे मुझको कब तक

 मुझको घायल करने वालों से

 हाथ मिलाओगे कब तक

 जन गण मन की भाषा को

 तुम निर्लज्ज नहीं समझ पाते

 इससे तो मैं बाँझ भली

 पैदा होते ही मर जाते 

लाल किले की प्राचीर से

 फिर झंडा फहरायेंगे

 अपनी झूठ थोथी बातें

 बार-बार दोहरायेंगे

घात लगाए बैठे हैं

 सिंहासन कैसे पाना है

 सत्ता हासिल होते ही 

फिर मूक बधिर बन जाना है

 जब वीर सपूतों को दुश्मन 

सीमा पर नींद सुलाता है 

यही नपुंसक सिंहासन

 गिरगिट के रंग दिखाता है

 भोली भाली जनता को 

कब तक यूँ ही बहलाओगे

 क्या समय कभी वो आएगा

 जब माँ का कर्ज चुकाओगे ।

पैमाना धन दौलत का

एस.जे. घाटे (जैन)

 

धन दौलत के पनपते ही आदमी के चेहरे बदल जाते हैं, इसके चमकते दायरे में रिश्तों के रास्ते बदल जाते हैं।

धन दौलत के जिन्दगी आदमी की बिना इसके है एक खोई हुई मंजिल, इसे पाने की हसरत में आदमी के पैंतरे बदल जाते हैं।

धन दौलत के रिश्ते नातों को तोला जाता है सदा इसी पैमाने पर, बगैर इसके आदमी तराजू में से गिरते नजर आते हैं।

धन दौलत के इन्सान और मानवता सामने है इसके एक बड़ी चुनौती, झूठे और मक्कार धन का नकाब पहने नजर आते हैं।

धन दौलत के जमाना एक था दो कि छोटे करते थे सम्मान बड़ों का, दौलत की खातिर आज बेटे बाप से बिछड़ते नजर आते हैं।

धन दौलत के ..... विश्वास और आशा का इस दुनिया में अब निशां कोई नहीं, जिसे देखो स्वार्थ साधे सभी छुटे रुस्तम नजर आते हैं।

धन दौलत के परस्पर स्नेह और भाई-चारा रह गया है अब सिर्फ एक आडम्बर, आदमी अंदर से काले बाहर से सफेद गमजाये नजर आते हैं।

धन दौलत के धन दौलत के पीछे पड़ने वाले दिग्गजों की दास्तां सुनावें किसे, खुदा के पास जाते वक्त सिर्फ फूलों से ही सजे नजर आते हैं।

धन दौलत के पनपते ही आदमी के चेहरे बदल जाते हैं ......

निर्भीक बेटी

: उषा जायसवाल

 

सूरज चाहिए प्रकाश के लिए

मुझे भी चिलचिलाती धूप चाहिए

 तपने के लिए

वर्षा चाहिए धरती को 

अंकुरित होने के लिए

 मुझे वर्षा चाहिए भीगकर स्निग्ध हो

 स्वच्छ होने के लिए

 कड़कती ठण्ड चाहिए

 मौसम परिवर्तन के लिए 

मुझे ठिठुरती ठंडक चाहिए

 आलस भगाने के लिए

 मैं जी जान से जुट सकूँ 

कर्म के लिए

 यही होगा मेरा वतन

 हर मौसम के स्वागत में 

रहूँ निर्भीक

क्योंकि मैं भारत माँ की

निर्भीक बेटी हूँ।