श्रीमती सुशीला जिनेश
नेहा ने टेबिल पर नाश्ता लगाया और बच्चों को आवाज दी ” चलो सोनू, निक्की, पापा के साथ नाश्ता कर लो। मैं अभी मंदिर होकर आती हूँ।” नेहा तेज कदमों से चली जा रही थी, सडक बिल्कुल सूनी थी उसने सोचा जल्दी से पार कर ले, अभी वह बीच सडक- पर पहुँची ही थी कि तेज गति से दनदनाती हुई जीप नेहा को कुचलते हुये निकल गई। उसके गिरते ही आसपास के दुकानदार और पैदल चलते लोग दौड़ पड़े। सामने ही पुलिस चौकी थी। तुरन्त पुलिस ने आकर लाश को अपने अधिकार में ले लिया।
पड़ोस के खुराना साहब दूध लेकर .लौट रहे थे। भीड़ को हटाते हुये उनकी दृष्टि नेहा के क्षत-विक्षत शरीर पर पड़ी। घबराये हुये वे नेहा के घर गये और नेहा के पति राकेश से हॉफते-हॉफते सारी घटना बयान की। राकेश के तो जैसे होश उड गये, हाथ पैर सुन्न पड गये। वह धम्म से कुर्सी पर बैठ गया। तभी खुराना साहब बोले ” घबराओ मत राकेश मैं तुम्हारे साथ हूँ, जल्दी चलो, ज्यादा देर करना ठीक नहीं है।"
राकेश के पहुँचते ही पुलिस ने लाश का एम्बुलेन्स में रखा और पोस्टमार्टम के लिये अस्पताल ले गई।
सोनू और निक्की को खुराना साहब की पत्नी संभालती रही। सोनू ने आंटी से बार-बार पूछा “मम्मी तो मंदिर से आधे घंटे में लौट आती हैं, आज इतनी देर क्यों हो गई” आंटी ने उन्हें बहलाया “तुम्हारे नानाजी की तबियत खराब हो गई है इसलिये मम्मी वहां गई हैं।’’
सोनू ने सोचा मम्मी तो हम दोनों को लेकर नानी के घर जाना चाहती थीं, पापा को छूटटी नहीं मिल रही थी अतः अगले महिने जाना था।
अस्पताल की भागदौड़ में राकेश बच्चों से दिन भर नहीं मिल सका। निक्की पापा मम्मी की अनुपस्थिति में सोनू से चिपकी रही । सोनू को भी ऐसा लगा कि जैसे कि निक्की की देखभाल का भार उस पर आ गया है। उसने उसका मुंह धुलाया और कंधे से उसके बाल संवार दिये। निक्की के खाने-पीने का भी विशेष ध्यान रखा ।
निक्की तो मासूम थी लेकिन सोनू का मन उदास था। उसे खाना भी अच्छा नहीं लग रहा था । मम्मी दोनों को कितने प्यार से खाना खिलाती थी।
रात को इन्तजार करते-करते जब- बच्चे सो गये तब राकेश उनको लेने आया। अपनी आंखों को बार-बार पोछते हुये उसने अनुनय की “शालिनी दीदी मैं चाहता हूँ कि सोनू निक्की को उनकी मम्मी की मौत का पता न लगे। वे अभी मासूम है, यह घटना उन्हें सहमा सकती है। क्या आप इसमें मेरी मदद करेंगी” “ हां-हां क्यों नहीं, बोलो मैं क्या करूं ।
शालिनी ने तत्परता से पूछा।
“बस सोनू निक्की को तीन-चार दिन तक आप अपने घर रख लें । फिर सभी अन्तेष्टि क्रियाओं से निवृत होकर इन्हें ले जाऊंगा ।” राकेश ने कहा।
पर राकेश भैया एक न एक दिन तो उन्हें बताना ही पड़ेगा।” शालिनी बोली।
“ वह सब मैं बाद में देख लूंगा, अभी स्वयं मैं इस स्थिति से उबरने की कोशिश कर रहा हूँ उन्हें कैसे सम्हालूंगा।” राकेश ने कहा। नेहा की मौत की खबर बच्चों को न लगे, इसके लिये राकेश ने भरसक प्रयत्न किये। पड़ोस में उन्होंने सबको समझा दिया था, रिश्तेदारों में किसी को खबर नहीं की थी मात्र चार-पांच पड़ोसियों की मदद से वह दाह-संस्कार कर आया था।
तीन दिन बाद वह बच्चों को लेकर घर आया था। अब राकेश ने घर की ओर ध्यान दिया। घर एकदम सूना लगा। नेहा से हर कोना सजीव लगता था बच्चे भी सहमें से थे। राकेश ने एक अच्छी आया का प्रबंध कर लिया परन्तु निक्की सोनू से ही अपने सब काम करवाती थी।
नेहा की मौत को आज छटवाँ दिन था कि अचानक राकेश ने नेहा के मम्मी पापा को आते देखा। वह दौड़कर सड़क पर पहुँचा और बोला “आप लोग अचानक ।’’
“बैटा रात को मैंने बड़ा बुय सपना देखा । नेहा ठीक तो है ना” पापा ने व्यग्रता से पूछा।”
“पापा नेहा अब इस दुनिया में नहीं है” राकेश ने कहा।
“क्या” मम्मी अवाक् रह गई । हूँ
“पर बच्चों को अभी तक मैंने यह बात नहीं बताई है, और मैं यह चाहता हूँ कि यह उनको अभी पता न लगे।” राकेश विनयपूर्वक बोला।
“ ठीक है बेटा मैं सब कुछ संभाल लूंगी।” मम्मी ने रूंधे गले से कहा।
नाना-नानी को देखकर सोनू-निक्की दौड़कर उनके पास पहुँच गये । ” नानी आप मम्मी को क्यों नहीं लाई हमें उनके बिना यहां अच्छा नहीं लगता।
नानी ने निक्की को गोद में बिठाया सोनू को प्यार से समझाते हुये बोली “बेटा तेरे नाना को डा. को दिखाना था । घर अकेला कैसे छोड़ते इसलिये तुम्हारी मम्मी वहीं है।’
“फिर हमें भी वहां ले चलो” दोनों बच्चे एक साथ बोले।
“ देखो तुम्हारे पापा की छुट्टियां होने वाली है तुम उनके साथ आना” नानी ने समझाया।
राकेश ने कई बार चाहा कि सोनू-निक्की को सच बता दे , पर शब्द होठों में ही अटक जाते थे।
तेरहवीं के दिन राकेश ने पंडितजी को बुलाकर कथा कराई । वह दिनभर व्यस्त रहा बच्चों ने अपने को उपेक्षित महसूस किया तो वे दोनों पिछवाड़े बर्तन मांजती हुई चम्पा के पास आकर बैठ गये।
सोनू ने चम्पा से पूछा “चम्पा तू स्कूल क्यों नहीं जाती, सारे दिन बर्तन झाड़ू करती रहती है।’’
दस ग्यारह वर्ष की चम्पा बोली "मेरी सौतेली मां मुझे सारे दिन काम करवाती है, और खाना भी नहीं देती।”
"सोनू तेरी मां मर गई है अब तेरे पापा भी तेरी सौतेली मां ले आयेंगे।” चम्पा बोली।
“नहीं मेरी मां नहीं मरी, वो तो नानी के घर गई है।” सोनू ने कहा।
“सब तुझसे झूठ कहते है सोनू” चम्पा ने जोर देकर कहा।
सोनू अवाक रह गया। पापा ने भी मुझसे झूठ बोला। हो सकता है निक्की के कारण झूठ बोला हो। लेकिन उसके कोमल मन को घक्का लगा। उसने संकल्प किया वह पापा को दूसरी शादी नहीं करने देगा। उसे सौतेली माँ नहीं चाहिये। वह मासूम निक्की को भी मारेगी, सोचते ही उसका दिल कांप गया।
सोनू अब हर आने जाने वाले पर नज़र रखने लगा। आजकल जो भी पापा के मित्र या रिश्तेदार आते सब पापा को शादी करने के लिये बाध्य करते । लेकिन पापा ने सबसे साफ मना कर दिया। '' मैं बच्चों की सौतेली माँ नहीं लाऊँगा।'' पापा की इस उक्ति से सोनू के मन में पापा के लिये प्यार और श्रद्धा बढ गई।
इसी तरह दो महिने ही बीत गये। अचानक एक दिन सोनू की ममता मौसी आ गई । दोनों बच्चे मौसी से लिपट गये मौसी के सानिध्य में सोनू को मां के स्पर्श का आभास हुआ।
ममता ने घर की सब जिम्मेदारी संभाल ली। बड़े प्यार से वह दोनों बच्चों की देखभाल करती ।
सोनू नहीं चाहता था कि मौसी अब इस घर से वापस जाये। उसके मन में बाल सुलभ जिज्ञासा जगी कि मौसी तो बिल्कुल मां जैसी है, वैसी ही सूरत, वैसा ही रंग, और माँ के समान प्यार भी करती हैं । क्यों न मौसी और पापा की शादी करवा दी जाये।
रात को मौसी निक्की को बुला रही थी तब सोनू ने पूछा ''मौसी आप पापा से शादी करोगी?'’ ममता इस प्रश्न से हतप्रभ रह गई और कोई जवाब नहीं. दे पाई। “सोनू बेटे सो जाओ ” ममता ने कहा। पर सोनू की आँखों से नींद उड गई थी, उसे तो अपने और निक्की के भविष्य की चिन्ता सता रही थी। कहीं पापा ने अपना फैसला बदल दिया, और सौतेली मां ले आये तो वह क्या कर लेगा। वह तो अभी छोटा है, कौन सुनेगा उसकी बात।
ममता को भी नींद नहीं आ रही थी, उसने सोनू के प्रश्न पर विचार किया । क्या ऐसा हो सकता है? उसके ऐसे भाग्य कहाँ?
ममता को नेहा दीदी के भाग्य पर ईष्या होती थी । कैसा समृद्ध घर और रूपवान पति मिला था उनको और कैसे प्यारे बच्चे ।
बिना दहेज के शादी हुई थी उनकी । अपनी पढ़ाई के बल पर उन्होंने सब कुछ पा लिया था। लेकिन उनकी जीवन रेखा कितनी छोटी थी।
अभागी ममता तो मां की बीमारी के कारण पढ़ भी नहीं पाई थी। मैट्रिक के बाद उसे घर सम्हालना पड़ा था।घर का सारा पैसा मां की बीमारी में खर्च हो गया और कम पढ़ी होन के कारण ममता को किसी ने स्वीकार भी नहीं किया। इधर उसकी उम्र भी बढ़ती जा रही थी उसे अपने भविष्य की चिंता थी कि मां-बाप के बाद उसे कहाँ आश्रय मिलेगा?
सोनू का प्रश्न उसके दिमाग में घूम रहा था। क्या जीजाजी उसे स्वीकार लेंगे? यदि उनकी ओर से पहल हुई तो वह घर जिन्दगी भर नहीं छोडेगी।
सोनू सिर्फ इन्हीं विचारों में खोया रहता था कि पापा और मौसी की शादी किस प्रकार करवाई जाये।
पापा टी.वी. पर फिल्म देख रहे थे सोनू-निक्की पास बैठे थे। पंडितजी नायक-नायिका की शादी करवा रहे थे। सोनू बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी वह झटके से उठा और किचिन में काम कर रही मौसी का हाथ पकड़ कर ले आया। पापा के हाथ के ऊपर मौसी का हाथ रखकर सोनू बोला” पापा हमने मौसी से आपकी शादी करवा दी, अब आप हमारी सौतेली माँ नहीं लायेंगे। दोनों ने मुस्कुरा कर अपनी स्वीकृति बच्चों को दे दी। शायद नियति को यही मंजूर था।