:उषा जरासवाल
कुछ दिनों से प्रतिभा जी दिखाई नहीं दे रही हैं। ऐसे हो प्रतिभा जी घर बैठने वाली नहीं हैं। उन पर तो प्रभु की कृपा है, वह रोज सत्संग आती हैं और अपने प्रवचन से कोई न कोई ज्ञान देकर सबको तृप्त करती है। इतना सोचना था कि सामने से वह आती हुई दिखाई पड़ी। कहते हैं न कि तुम जिसे दिल से याद करते हो वह तुम्हारे पास होता है। सत्संग चल रहा था पर मेरा ध्यान रह-रहकर प्रतिभा जी पर जा रहा था। मैंने देखा हमेशा खिला रहने वाला उनका चेहरा आज उदास है, आंखें डबडबाई हुई, सूजी हुई सी ऐसा लग रहा था कि उनकी नींद पूरी नहीं हुई थी। आज वह कुछ कहने के मूड में नहीं थीं, न उत्साह, न उमंग, न कोई दृष्टान्त, न कोई प्रवचन, न भजन। आखिर मैंने पूछ ही लिया प्रतिभा जी क्या बात है आप तो बहुत दिनों बाद आई हैं क्या सुना रही हैं। मेरा इतना कहना था कि वह बोल पड़ीं अब क्या सुनाएं जब अंदर की अशांति लगी पड़ी हो तो क्या कहना, क्या सुनना अरे क्या हो गया प्रतिभा जी। आप ऐसा क्यों कह रही हैं? आप तो साहसी हैं, धैर्यवान हैं आप कभी विचलित होने वाली नहीं है। जरूर कोई बड़ी परेशानी है आप हम सबको बताएं हल जरूर निकलेगा सुधा ने कहा। अब उनका धीरज का बांध टूट गया पहले
तो वह फूट-फूट कर रोने लगी। फिर जब अंदर से थोड़ा खाली हुई तब बोलीं और बिना रूके बोलती रहीं। 'क्या करती' आखिर दुःख के घड़े को खाली तो करना ही था। बेटी का ब्याह संयुक्त परिवार में किया था। तीन जेठ-जेठानी, दो ननद, सास-ससुर सब साथ ही रहते थे। सबसे छोटी बहू मेरी बेटी सबकी चहेती रही है। प्रभु कृपा से दोनों ननदें अच्छे परिवार में गई हैं, सुखी हैं। यह तो बहुत अच्छा है ईश्वर जिम्मेदारियों से जितना मुक्त करे, उतना ही अच्छा, मैंने कहा।
'अच्छा क्या है जिम्मेदारियां' तो बढ़ती ही जाती हैं परिवार तो बढ़ता ही गया सबके बाल-बच्चे मिलाकर 20 लोगों का परिवार आखिर एक घर में कब तक संभव था। सो ससुर ने सब बेटों का बंटवारा कर दिया धंधा भी अलग-अलग करके चूल्हा चौका भी अब अलग है। दो भाई उसी पुराने घर
में रहते हैं और दो को अलग फ्लैट दे दिया है।' चलो अच्छा हुआ ससुर ने अपने सामने सबका हिसाब कर दिया इसमें ही भलाई है जिस परिवार में बड़े बुजुर्ग ऐसी समझदारी दिखाते हैं, वहां प्यार बना रहता है। मेरी इस बात में सहमति दिखाते हुए सुधा ने भी प्रतिभा जी को समझाइश दी।
पर प्रतिभा जी को शांति कहाँ उनके ऊपर तो दूसरा ही बोझ था वह बोली- 'मेरी बेटी को तो वही पुराना घर का हिस्सा दिया है और खुद भी उसी छोटे बेटे बहू के पास रहने का फैसला लेकर कुण्डली मारकर बैठे हैं। अब आप ही बताओ मेरी बेटी पर इतना बड़ा बोझ है मैं कैसे दुःखी न होऊँ।' समस्या तो गंभीर थी इधर सत्संग हाल पूरा खाली हो गया था पर अब मैं सुधा दोनों प्रतिभा जी के दुःख में गहरे डूब गये दुःख का कोहरा गहरा रहा था उसमें एक प्रकाश की किरण दिखाई पड़ी जब उन्होंने बताया कि ससुर ने अपना भी एक हिस्सा रखा है और अभी भी वह दुकान जाते हैं दुकान सबसे पुरानी थोक जनरल स्टोर की है उनका स्वास्थ्य भी अच्छा है और घर में दो कमरे अपने नाम कर रखे हैं पर रसोई छोटे बेटे बहू के साथ ही है और पोते पोती सोनू, मोना के लिये भी दुकान से लौटते समय उनकी मनपसंद कुछ न कुछ लेकर भी आते हैं। हमें लगा प्रतिमा जी के मन में यह एक आक्त की किरण जगी है अब उन्हें इस बात का संतोष है कि बिटिया पर कम से कम उनके दोनों के कारण कोई आर्थिक बोड़ा नहीं पड़ेगा। आगे उन्होंने कहना शुक्रू किया- आपको बतायें सास तो मट्टी-कष्टी है जो बेटी के काम में साथ बंटा लेती है असल में बच्चे छोटे से ना तो उससे भी इतना कहीं बनता है? हम दोनों को भी देर हो रही थी हमने उनकी इस बात में संतोष देखा और कश- जो ठीक ही हुआ अब तो आपको अच्छा लगता होगा। पहले की अपेक्षा कब तो बेटी का काम भी कम है ना बड़े परिवार में तमाम बखेड़े होते हैं सबको खुश करना मुस्किल होता है। मास-ससुर का भी कोई भार नहीं दोनों तरह की हेल्प बेटी को मिल रही है आर्मिक भार भी नहीं रहेगा और कान का बोझ भी पहले की अपेक्षा कम ही है। वह बोली- 'सो तो है। जब सब साथ में किचन इसे ही देखना पड़ता दिन भर चूल्हे चौके में व्यस्त। कभी इसका खाना करो, कमी दुकान के लिये डिब्बे तैयार करो। अपने लिये तो उसे समय ही नहीं होता था। बच्चे तो हात ही संभालती थी उससे हिल है अब भी बच्चे वादी-बाची करते नहीं अधाते। सीमा को ज्यादा ढंग नहीं
करते। मैंने उन्हें खुश करते हुए कहा- यह भी कितनी अच्छी बात है। कि आपकी बेटी खुशकिस्मत है वह चाहे तो सर्विस ज्वाइन कर सकती है शादी से पहले तो टीचिंग करती थी न। अपने बच्चे तो माल लिये वायी कहती है- 'अब तुम जानो तुम्हारे बच्चे जाने
इतना जब हमसे नहीं होगा। सर्विस की इस बात को सुनकर तो उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आयी और उन्होंने कछ- 'सीमा अब जुलाई से ही अपने पुराने स्कूल में जॉब करेगी और हम सब चल दिये। लगा कल से प्रतिभाजी फिर से सत्संग में आयेंगी और पहले जैसे ही उत्साह में रहेगी।
दो चार दिन बीत गये फिर प्रतिभा जी का कहीं अता-पता नहीं। आज सत्संग के बाद मैंने गाड़ी उनके घर की और मोड़ बी। घर पहुंचकर देखा प्रतिमा जी अपने सासू माँ को गरम- गरम पराते बनाकर खिला रही थी। हमें देखते ही वह हमेशा की तरह खिल गई। पुराने उत्साह से बोली चलो सही समय पर आयी हो नाश्ता करो में गरम-गरम आलू के पराठे बना रही हूँ। हमने कहा- हम तो बस आपका और माँ जी का हालचाल पूछने आ गये काप नाश्ता करो हमें ये बताओ सब बैंक तो है न. सत्संग क्यों नहीं जा रही हो। हमारा इतना कहना था कि उनका बही उदास सा बिंतादुर चेहरा सामने का गया। हमे हमें समझते देर नहीं लगी कि प्रतिभा जी अमे अभी भी दुःख के पहाड़। तले दबी है। हम कुछ कहते कि माँ ने कहना शुरू कर जी कर दिया बेटी सीमा का बुख इसे दुःखी दुखी किये है। में में इसे समझाती हूँ कि तुम मेरी कितनी सेवा करती हो जब तक मेरा स्वास्थ्य ठीक था तब तो तुम की भी पर अब तो मैं कुछ नहीं करती तब भी तुम इतने प्रेग से मेरी सेवा करती हो। सीमा भी खुश रहेगी जसे तो तुम्हीं कहती हो न कि यह तो पहले से ज्यादा को हो गयी है। तुम इतना दुःखी होगी तो उसे और चुच्च
'मेरी तो आपके साथ रहने की इतनी आदत बन गयी है कि मैं तो आपके बिना कल्पना भी नहीं कर सकती फिर आप तो मेरे हर दुःख- सुख में साथ हैं। पर, पर क्या.... आप तो ज्ञानी हैं खुद अपनी गृहस्थी को जिम्मेदारियों से संभाला है और सत्संग में, पड़ोस में सबकी आदर्श है फिर आप बेटी को हिम्मत दें ताकि वह भी आपकी तरह औरों का आदर्श बनें। आपके संस्कार कहीं नहीं जायेंगे वह अपनी गृहस्थी में पूर्ण होगी और आप भी गर्व कर सकेंगी अपनी बेटी पर। हाँ! मैंने कहा! आप सही कहती हैं कल मुझे फोन पर कह रही थी माँ आप परेशान न हो हम बहुत खुश हैं हमारे ऊपर बुजुर्गों की छत्रछाया है। फिर बच्चे भी तो दादी-दादा के बिना नहीं रह सकते।'
'मैंने फोन पर ही उसे डांटा अच्छा दादा-दादी बस तेरे बच्चे के हैं बाकी उन सातों बच्चों के नहीं हैं वे कैसे मौज में रहते हैं। तू जरा सोच जब ननदें तेरे घर आएंगी उनका तो रिश्ता माँ-बाप से हैं जहाँ वे होंगे वहीं आएंगी फिर उनके बच्चों का देना-लेना बिदा कर उनकी शादी ब्याह का ममेरा करना सब तेरी जिम्मेदारी होगी न। फिर क्या करेगी और फिर जब अभी सब बेटे माँ-बाप से दूर हैं तब जब उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा तब तो वह मुड़कर भी नहीं देखेंगे आखिर तू ही मरेगी बोझ बन जायेंगे, ये बूढ़ी बूढ़ा। और पता है उसके बाद भी उसने क्या कहा- माँ आपके ही संस्कार हैं अब क्यों दुःखी हैं हम आपका सिर नीचा नहीं होने देंगे। वह बोली- 'मैं क्या कहती बस मन में यही कहा- 'संस्कार माँ पर भी थे और अब बेटी पर भी और देर तक बुदबुदाती रही ।'