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फूलों की बगिया

बहुत पुरानी बात है जब इस धरती पर हजारों तरह के जीव जन्तु पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ पाई जाती थीं प्रकृति की छटा देखते ही बनती थी। मौसम भी सुहाना रहता और ऋतुएँ समय पर आती जाती हरियाली से भरी धरती बड़ी भली लगती थी। पहाड़ों की ऊँचाईयाँ, झरनों का संगीत, नदियों की बलखाती लहरें ये सब के सब नन्हीं महक की आँखों में आज भी ताजा है क्योंकि अभी-अभी वह अल्मोड़ा से अपनी नानी के घर से होकर आई है। अल्मोड़ा की सुन्दर घाटियों में कुछ दिन बिताने के बाद वह वापिस अपने पटना लौटी थी स्कूल खुल चुके थे वह अपने रोजमर्रा की भागदौड़ में जुट गई और धीरे-धीरे उसके जेहन से स्मृतियाँ धुंधली होने लगी थीं। महक के मन पर प्रकृति सौन्दर्य का गहरा प्रभाव पड़ा था, अल्मोड़ा में वह अक्सर एक बगिया में जाती थी और बड़ी गंभीरता से वह फूलों को निहारती और उनसे बातें करती उनसे जैसे दोस्ती हो गई थी और इस तरह बातें करना महक को बहुत अच्छा लगता। यह दोस्ती महक भुला नहीं पाई थी।

रविवार का दिन था, आज घर में सब मौजूद थे। पापा-मम्मी, चाचा- चाची, दादा-दादी, बुआ सब यह चाहते थे आज किसी उपवन में पिकनिक के लिए चलें। सबने मिलकर यह प्लान किया कि घर से लगभग 20 कि.मी. दूर एक बहुत पुरानी 'फूलों की बगिया' है जो बहुत ही प्रसिद्ध है वहाँ दिन बिताने के लिए जाया जाए, सबने सहमति दी और पिकनिक मनाने वे सब साजो-समान के साथ खुशी-खुशी घर से चल पड़े। रास्ते में चलते हुए सब उस पिकनिक स्थल की खूब प्रशंसा कर रहे थे। महक भी उन सब बातों को ध्यान से सुन रही थी, उसकी स्मृति में अल्मोड़ा की वह बगिया थी जिसमें उसे जाकर बहुत खुशी मिलती थी, उसे भी अपने दोस्त बने सभी फूलों की याद हो आई, खिले गुलाब की, पीले गदराए खूबसूरत गैंदों की, चम्पा, चमेली मोगरा बेलियों गुलाब ऐसे सब याद आते जा रहे थे। महक को प्रकृति से विशेष प्रेम पराग लिए फूलों की बगिया में जाते हुए उसे बहुत खुशी हो रही थी उसने मन ही मन यह तय कर लिया कि वह बगिया में जाकर वहाँ सबसे दोस्ती अवश्य कर लेगी। पिकनिक को लेकर बड़ों की अपनी राय लेती है पुरुष खाने-पीने और राजनीतिक, क्रिकेट आदि की चर्चा कर, सिगरेट शराब आदि पीकर मौज कर समय बिताना, महिलाएँ भी खाने पीने की व्यवस्था करना मेकअप साड़ी ज्वेलरी आदि की बड़ चढ़कर बातें करना शेखी बघारना आदि में रुचि रहती है बच्चे भी खूब खेलना कूदना पसंद करते हैं उन्हें खुली हवा दौड़ना, भागना बॉल खेलना, क्रिकेट खेलना, खाना-पीना आदि में रुचि रहती है। पर महक कुछ अलग स्वभाव की थी वह पेड़ पौधों में जीवन को देखती वह अपनी तरह भावनाओं को उसमें महसूस करती वह जब भी पेड़ पौधों के बीच में बैठकर अपने मन की बात करती तो उसे अनुभव होता कि जैसे उसकी बातों का सकारात्मक जवाब भी उसे मिलता जा रहा है।

रास्ते में चलते हुए, एक ढाबे में थोड़े समय के लिए रुकना हुआ, हम सब गाड़ियों से उतरकर एक ही स्थान पर रुके और गोल घेरा बनाकर बैठ गए, चाय वाय का दौर चला थोड़ा विश्राम हुआ, वहीं दादाजी ने बताया कि जिस जगह हम सब पिकनिक के लिए जा रहे हैं वह जगह बहुत ही पुरानी जगह है जिसे स्थानीय लोगों ने एक साधारण पार्क के रूप में बनाया था तब बहुत ही छोटा था, इस फूलों की बगिया में एक दिन बड़ी ही विचित्र घटना घटी वहाँ एक वनस्पति विज्ञान का एक वैज्ञानिक आया करता था जो अभी पढ़ रहा था स्वयं छात्र था वह घण्टो पौधों के बीच बैठता और बातें करता, वहाँ पीपल का एक पेड़ था लगभग 50-60 साल पुराना जिसने मानों उस वैज्ञानिक को कुछ ऐसी जानकारियाँ दी जिससे प्रभावित होकर उस छात्र ने स्थानीय लोगों से मिलकर वह सब बातें उन्हें बताकर उस स्थान को एक विशेष स्थान के रूप में परिवर्तित कर दिया अब यह स्थान बहुत बड़ा था और आकर्षक भी, तभी इसे 'फूलों की बगिया' का नाम दिया गया। तब से अब तक पूरे भारतवर्ष के सभी स्थानों पर चाहे जितने परिवर्तन हुए हों प्रकृति के परन्तु आप अब भी वह फूलों की बगिया एक ऐसी ऊर्जा से अनुप्राणित हो रही है जिसे देखकर हमें स्वयं पर ग्लानि होती है कि जिस प्रकृति से यह शरीर निर्माण हुआ है उस प्रकृति से दूर होकर हम कितने पतित हो गए है और वही प्रकृति अपने निःस्वार्थ उदात्त भावनाओं के कारण आप भी शक्तिशाली और जीवनदायिनी बनी हुई है। दादाजी आगे कहा - शेष सब आँखों से देखने पर ही चर्चा करेंगे। यह कहकर उन्होंने सबको गाड़ी में बैठने का आदेश दिया। हम सब आगे की सोचते हुए चल पड़े।

दिन के लगभग 12.00 बजे हम फूलों की बगिया में पहुँच गये। गाड़ियाँ पार्क कर हम सब अपने अपने सामान के साथ इकट्ठे हुए और प्रवेश द्वार की ओर बढ़े। प्रवेश पत्र खरीदा और प्रवेश द्वार से हम सब 'फूलों की बगिया' में भीतर चले गए, और जो दृश्य सामने था वह उसे देखकर तो हम सब की खुशी के मारे चीख निकल गई लगा सौन्दर्य भी कितना आकर्षक होता है। बगिया का पवित्र पूर्ण प्राकृतिक नैसर्गिक सौन्दर्य जो देखा तो मानो भीतर का सौन्दर्य बल्लियाँ उछलने लगा और चीख बनकर मानों मुख से फूट पड़ा। सब के सब हम रोमांचित थे लगा पल भर के लिए हमने अपने पैर स्वर्ग पर ही धर दिए हैं। एक ओर जहाँ सौन्दर्य ने हमें चकित किया वहीं दूसरी ओर वहाँ के अद्भूत वातावरण ने हमें आश्चर्य में डाल दिया। वहाँ थोरा ओर गहन नीरवता, स्तब्धता और शांत वातावरण था और था प्राणों को शक्ति देने वाली ठंडी ठंडी हवा, वहाँ की यह मन्द मन्द हवा मानों हम सबको एक नई शक्ति से भरती जा रही थी। हमारी थकान, शिथिलता, निराशा के भाव तिरोहित हो रहे थे और हम सबके अपने भीतर एक नई शक्ति, उमंग उत्साह, खुशी का अनुभव किया ऐसा लगा दादाजी ने इस बगिया के बारे जो कुछ भी कहा वह सत्य ही लगी। हम सबने अपने अपने तरीके से इस बगिया के रहस्य को जानने का निश्चय किया कि सब चारों ओर घूमते हुए, पूरा आनंद लेते हुए, विश्राम स्थल पर इकट्ठे होगें और सभी कैमरे मोबाइल आदि लेकर उस विस्तार से फैले हुए बगिया के सौन्दर्य का पान करने के लिए बिखर गए।

'फूलों की बगिया' का विस्तार सबसे बड़ा आकर्षण था और उससे भी कहीं अधिक आकर्षण तो उस हरियाली से था, जिससे पूरा वातावरण खूबसूरत दिखाई दे रहा था। प्रवेश द्वार से भीतर आते हुए, हमारी नजर उस संगमरमर की श्वेत चमकदार खूबसूरत पथ पर पड़ती है जिसके दोनों तरफ तराशे हुए खूबसूरत हरे हरे पेड़ लगे है। पथ के दोनों ओर लगे इन पेड़ों से उस रास्ते की खूबसूरती और भी बढ़ गई है उस पथ से ही आगे बढ़ते हुए, जो दृश्य दिखाई देता है वह बहुत ही खूबसूरत दृश्य है। संगमरमर का यह पथ लगभग आधा से पौन किलोमीटर तक लम्बा है और उसकी दोनों तरफ लगभग इतनी ही दूरी तक सुन्दर बागवानी दिखाई देती है। जिसमें प्रवेश द्वार से ही बाउंड्रीबॉल के साथ साथ हरे-भरे नारियल के पेड़ लगे हैं। हरे भरे समृद्ध पेड़ लगभग सभी पेड़ 100-150 फलों से लदे। प्रकृति के प्रहरी बन यह इस बगिया की निगरानी करने से जान पड़ते हैं। पेड़ों से लगभग 1 फुट की दूरी पर टाइल्स से खूबसूरत पगडन्डी बनी है उसके बाद सेज लगी है खूबसूरत आकार से तराशा हुआ है, उसके बाद फूलों की खूबसूरत क्यारियाँ है और है आयताकार स्थान पर हरी मखमली घास उसके बाद फूलों की क्यांरियाँ, हेज और टाइल्स से बना थोड़ा पथ। बीच में संगमरमर का यह लम्बा पथ और उसकी दोनों ओर यह खूबसूरत उपवन सैकड़ों तरह के रंग बिरंगे फूलों की इन खूबसूरत क्यारियों को देखते हुए मन सचमुच तृप्त हो जाता है। लगभग पौन से एक किलोमीटर की दूरी तक फैले इस उपवन की खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं। इस बगिया का सूत्रधार वह पीपल का पेड़ भी मौजूद है जिसकी हरियाली, जड़ों से भरी समृद्ध गहन छायादार गोल चौपाल है जहाँ बैठकर सचमुच मन में उठ रहे विचारों का जवाब मिल जाता है। प्रवेश द्वार से आरंभ हुआ संगमरमर का यह पथ लगभग 1 किलोमीटर की दूरी तय कर एक अण्डाकार (ओवल शेप) के भवन पर आकर टिकती है। इस भवन का नाम 'जीवन उत्सव' है। दरअसल यह वह स्थान है। जहाँ सम्पूर्ण प्रकृति का पर्यावरण का नैसर्गिक रहस्य और जानकारियाँ सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप में अंकित कि गई है और प्रकृति और मानव के सम्बन्ध के बारे में सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया गया है। समूचा भवन दो बड़े हॉल सहित लगभग चालीस से पचास कमरों का दो मंजिला सुन्दर भवन है जिसके भीतर अण्डाकार आँगन में खूबसूरत स्टॉल लगाए गए हैं जिनमें फल, ड्रायफ्रूट्स नारियल पानी, सलाद, और सब्जियाँ सब बिल्कुल वाजिब कीमत पर उपलब्ध करायी जा रही थी जिसका उद्देश्य पेड़ पौधों की उपादेयता, उदारता और निःस्वार्थता को प्रस्तुत करना था। अतः धरती कितना देती है यह प्रमाणित कर मानव मात्र को यह संदेश देना कि प्रकृति के साथ प्रेम करके ही हम जीवन में सुख शांति पा सकते है। पर्यावरण से सम्बन्धित सारी जानकारियों को प्रदर्शनी के रूप में स्थायी रूप से स्थापित कर बहुत सुन्दर प्रयास किया गया था, जो वास्तव में अनमोल है। इस प्रागंण में हजारों किस्म के फलस्वरूप है जिनमें ड्रायफ्रूट्स भी लगे हैं इस बगिया में जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात है वह यह है कि बारहों महीने मौसम की ताजगी ऐसी बनी रहती है और हर तरह के फल फूल सदैव उपलब्ध रहते हैं फिर इसके पीछे जो रहस्य है वह तो और भी चौंकाने वाला है।

नन्हीं महक और उसका पूरा परिवार पूरी बगिया का निरीक्षण कर सब विश्राम स्थल पर इकट्ठे हुए, सबने मिलकर जीवन उत्सव प्रदर्शनी देखी और खूब फल सब्जी, ड्रायफ्रूट्स खरीदे नारियल पानी पिया, नारियल पानी अमृत जैसा मीठा और शक्ति देने वाली लगा।

अंत में सब विश्राम स्थल पर एकत्र हुए, सब गोल घेरा बनाए बैठे तब दादाजी ने सबसे अनुभव व जानकारी पूछी-सबने एक एक कर अपने अनुभव व जानकारी दादाजी को सुनाई, किसी ने विस्तार के बारे में कहा तो किसी ने सुन्दरता, किसी ने फल फूलों पेड़ों के बारे में कहा परन्तु उन सबमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना तो महक ने दी महक ने कहा 'दादाजी पीपल के वृक्ष ने उस वैज्ञानिक छात्र से कहा था कि मनुष्य प्रकृति के पाँच तत्वों से बना है और उसके असंतुलन से उसके जीवन पर अमरस होता है। असंतुलित प्रकृति ही स्वास्थ्य और समृद्धि को प्रभावित करती है इसलिए तुम एक विस्तृत भव्य परिसर के रूप में इसे विकसित करो जिसमें धरती जलवायु अग्नि आकाश का एक साथ सदा योग बना रहे जिससे इस वातावरण में आते ही मनुष्य की असंतुलित प्रकृति संतुलित से और वह प्रकृति के संतुलन से शांति का अनुभव कर सके तभी उसे प्रकृति से प्रेम होगा। उसी पीपल ने बाद में उस बगिया में उपस्थित हर पेड़ पौधे को भी यह मूक संदेश दिया कि निःस्वार्थ प्रेम त्याग बलिदान और देने के भाव को अपने भीतर इतना पक्का करो कि मानव के द्वारा दिए नकारात्मक भाव इसके सम्पर्क में आते ही नष्ट हो जाए बस यही कारण है कि सब के एकजुट होकर किए गए इस निर्णय से उस बगिया में आज भी वही सकारात्मक सोच की ऊर्जा उसमें सतत् प्रवाहित होती रहती है, जिससे उसके भीतर जाते ही हमारा मन भी पवित्र बन जाता है और बच्चे भी स्वतः ही फूलों को और दूसरी व्यवस्थाओं को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। इस बगिया में धरती आकाश, जल, वायु व सूर्य की अग्नि की ऊर्जा सतत् शक्ति निर्माण करती है इसलिए यह सबसे अलग और अनोखा है। महक की जानकारी से सब अचंभित रह गए। दरअसल महक अभी छोटी ही है और पवित्र विचारों की है इसलिए प्रकृति की पवित्रता में आकर उसने अपने सारे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर लिए, इसलिए उसकी जानकारी बिल्कुल सही है। सबने महक को शाबाशी दी प्यार किया और जलपान ग्रहण कर कुछ विश्राम कर फूलों की बगिया को धन्यवाद कर सबने लौटने के लिए प्रवेश द्वार की ओर बढ़ना शुरु किया तभी चाचाजी ने कहा मैं तो चाहता हूँ हमारे देश के हर शहर में ऐसा ही एक फूलों की बगिया हो तभी महक ने तपाक से कहा- चाचाजी मैं तो चाहती हूँ कि बड़ी होकर में पूरे भारत देश को ही 'फूलों की बगिया' बनाऊँ- सबने एक स्वर में कहा "तथास्तु"