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कुदरत का संदेश

कुदरत के नियम अद्भुत हैं। वह कभी अन्याय नहीं करती है कुदरत मां की भूमिका में समस्त जगत को  धरती, आकाश, जल पर जीवित प्राणियों का  अपरिमित  स्नेह से पोषण करती है। क्या?  नहीं देती है आप स्वयं कल्पना करें धरती में  समाया ऐश्वर्य हमें  फसलों खनिजों अनमोल रत्नों,  सोना, चांदी, हीरा कोयला,  जल जैसे जीवन उपयोगी संसाधनों के रूप में प्रदान करती है बिजली पेट्रोल-डीजल जैसे वैज्ञानिक युग की आवश्यकता  ओं की भरपाई  भी कुदरत ही करती है। विविध स्वरूपों में सूखे मेवे काजू किसमिस बादाम अखरोट आदि आदि सु-स्वादु  फलों  की अनगिनत फसलों के माध्यम  से  कुदरत कितना वैभव हमें प्रदान करती है। कुदरत अपनी संतानों पर अपना निस्वार्थ प्रेम लुटाती है ऐसे में पशु पक्षी जगत जलचर  प्राणी यह सब प्रकृति के  नियमों के अनुसार आचरण करते हैं और कुदरत की दी हुई शक्तियों को प्रयोग कर के सभी मानव जगत को समय-समय पर सचेत भी करते हैं अर्थात  मनुष्य  को छोड़कर शेष सभी कुदरत के कानून काअक्शर; पालन करते हैं  यही विडंबना है सृष्टि के सौंदर्य को और कुदरत के अनुपम देन के बावजूद  अहंकारी मानव ही उसकी शक्ति को चुनौतियां देता रहता है। यह बात तो जगजाहिर है नियमों का उल्लंघन करने पर दंड तो मिलता ही है। भारतवर्ष  अपनी  संस्कृति और विचार वाणी व्यवहार से सारी दुनिया में पहचाना जाता है। ज्ञान विज्ञान ज्योतिष गणित और वेदों के ज्ञान की देन  से भरा देश आज  अपने ही  द्वारा किए गए गलतियों की सजा पा रहा है। आधुनिकत की अंधी दौड़ ने हमारी संस्कृति को  अप संस्कृति में बदल दिया इसलिए सारी  सामाजिक  व्यवस्था चरमरा गई। मजाक मजाक में ही लगता है कि हमारे देश की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक  सांस्कृतिक आध्यात्मिक मूल्यों में  विघटन  का विस्तार होता चला गया  जहां धर्म जाति पती संप्रदाय बोली भाषा जैसी बुनियादी एकता के मजबूत आधार ही धराशाई  हो गए हैं परिणाम हम  भारतीयों  ने  नैतिक मानवीय मूल्यों को खोकर घृणा और बदले के भाव से भरे हुए एक दूसरे कोशंकितनिगाहों से देखने को मजबूर हो गए। बदले हुए इसकी परिवेश  ने विकास की गति को विषैले विचारों और राजनीति के चलते प्रकृति को बहुत अधिक हानि पहुंचाई है। सामाजिक सौहार्द और  एकता के बिगड़ते  हालातों ने जैसे नकारात्मक शक्तियों का आह्वान कर लिया हो इसलिए दुर्भाग्यवश आज पूरा भारत वर्ष कोरोना दैत्य के शिकंजे में है चतपटा रहा है ऐसे में भी एकजुटता कहीं मजबूती से कायम नहीं हो रहा है कारण राग, द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार जैसा महादैत्य पहले से ही भारत के जन-जन में घर किए  हुए हैं तो  आज इस मानवीय मंच पर दैत्य महादैत्य का विकराल युद्ध चल रहा है यह सब संभव हुआ है कुदरत के कानून का उल्लंघन करने की अक्षम्य अपराध के कारण.