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जीवन की मुस्कान

भगवत गीता 

 

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानम धर्मस्य तादात्मनम ,

 परित्राणाय साधुनाम विनाशाय कृतम धर्म संस्था पदार्थों संभवामि युगे युगे 

 

जब-जब समाज मे   आत्मावीमुक्ता आसंवेदनशीलताउदासीनता अकर्मण्यता पाप हिंसा अपराध दुराचार व्यभिचार निराशा अविश्वास आत्मग्लानि  का भाव  बढ़  जाता  है और मनुष्य को धर्म व राष्ट्र धर्म को विस्मृत कर देता है तो स्वयं भगवान अपने सच्चे प्रतिनिधियों को धरती पर जन्म देता है अतः हे पार्थ परमात्मा या ईश्वर ने तुझे अपने प्रतिनिधि के रूप में धरती पर भेजा है उठ जाग अपने तो धर्म आत्म धर्म स्वकर्म राष्ट्र धर्म युग धर्म व कर्तव्य कर्म का पालन कर साधु-संतों सज्जनों पुण्यात्मा  देश भक्तों  व प्रभु भक्तों की रक्षा तथा पापियों व भ्रष्टाचारियों को नष्ट करने के लिए ही तेरा जन्म हुआ है अतः संशय व भ्रम को मिटाकर स्वधर्म को पूर्ण समर्पण के साथ निभा। संशय और भ्रम दरअसल हमें यह राह से भटका देते हैं और हमारी खुशी और  मुस्कान को भी हमारे जीवन से छीन लेते हैं  यह दोनों  ही  स्थितियां बड़ी गंभीर हैं। संसार में जो कुछ भी घटित होता है वह  किसी ना किसी उद्देश्य से होता है अकारण  कुछ भी नहीं होता है संशय और भ्रम को  मिटाकर हमें  अपने कर्तव्य  पथ पर  दृढ़ता पूर्वक बढ़ना चाहिए और सफलता हासिल करना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो जीवन में भ्रम मिटाकर हमें हमारे लक्ष्य के  दर्शन कराती  हैं और  सच्चा पुरुषार्थ करने का अवसर देती है जीवन को सुख में बाधा रहित सुंदर शहर निर्मल सुख शांति समृद्धि बनाना है तो भगवत गीता को ही हमारे जीवन में तो भगवत गीता ही हमारे जीवन में मुस्कान ला सकती है