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सत्य और अहिंसा

                                                                                    : स्व. श्री रामचन्द्र भार्गव

सभी का अपना-अपना धर्म है, धर्म का पालन हमार कर्त्तव्य है। जिस प्रकार फुलवारी में अनेक फूल होते हैं, वैसे ही संसार में अनेक धर्म हैं। सभी धर्मों के अपने अपने मार्ग हैं, किन्तु लक्ष्य एक है-लोककल्याण लक्ष्य पाने के लिए श्रद्धा विश्वास के साथ साथ पर चलते रहना कर्त्तव्य है, धर्म है। संयम और शील धर्म है। जरुरी है। हम दूसरे धर्मों को भी समझें।

धर्म में आता है परस्पर प्रेम, सत्य, अहिंसा, सदाचार, नम्रता व पवित्रता । धर्म के इस लोक में उन्नति व परलोक में मोक्ष मिलता है।

मानव इस सृष्टि का संवाहक है जो अपने जीवन को इसके सफलतापूर्वक संचालक में अपना अमूल्य योगदान देता है। पूरे संसार में ऐसे बहुत लोग हुए है, जिन्होंने मानवता की सुरक्षा का संकल्प लिया अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया। हमारे भारतवर्ष में एक ऐसे ही विराट व्यक्तित्व का अवतरण हुआ जिसने सत्य और अहिंसा के सहारे आजीवन मानव सेवा की। उनके नाम से आप सब परिचित ही हैं, क्योंकि वे राष्ट्रपिता हैं, अब आप सब समझ ही गए होंगे कि वे हमारे पूज्य बापू जी हैं। अपने अच्छे कर्मों के कारण ही उन्हें महात्मा की उपाधि मिली है इसलिए वे महात्मा गाँधी जी के नाम से भी जाने जाते है। बापू जी का चित्र भारतीय करेंसी पर अंकित होता है। 5, 10, 20, 50, 100, 500, 2000 सब पर। बापू सत्य की शक्ति को ही अपने जीवन का आधार मानते थे और ईमानदारी को सच्चा साथी । पूरे जीवन उन्होंने इसका साथ नहीं छोड़ा। जो सत्य को अपनाते हैं उनका व्यक्तित्व ईश्वरीय ऊर्जा से अनुप्राणित होता है। उनके व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण होता है कि किसी चुम्बक की तरह लोग उनकी ओर खींचे चले आते हैं। क्योंकि ईश्वर सत्य है और जो सत्य का साथ रहता है। वहीं ईश्वर भी उनके साथी बनकर रहते हैं। इसे परखना है तो सत्य को साथी बना लो खुद समझ जाओगे ।

जो सच्चा होता है वह कभी हिंसा नहीं करता है इसलिए बापू का सिद्धांत यही था 'सत्य और अहिंसा' अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारी शासन को जड़ से उखाड़ फैकने में इन्हीं दो हथियारों ने सहयोग किया। हमें बापूजी के जीवन में 'सत्य और अहिंसा' की प्रेरणा मिलती है। आइये हम भी इन्हें अपनाकर बापू का सम्मान बढ़ाएं और उत्तम नागरिक बनें।