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युवा भारत श्रेष्ठ भारत

सरस्वती कामऋषि

 

            भारत ऋषि मुनियों का देश है, जहां यह आस्था जन जीवन में व्याप्त हैं कि भारत की धरा मनीषियों की तप, साधना की भूमि हैं। ऋषियों की अपार श्रंखला हमारी विरासत में सम्मिलित हैं; भारतीय जनमानस को ज्ञान ध्यान, तप से उद्भव प्रज्ञा की ऐसी दौलत मिली है, जिसके बलबूते आज हम भारतवासी गर्व से कहते हैं कि हम भारतीय हैं। भारत की सबसे बड़ी विशेषता उसके नाम ही में समाहित है। 'भा' जिसका अर्थ है प्रकाश यह ज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है कहा जाता है कि अज्ञान अंधकार है और ज्ञान प्रकाश है इसी भाव को परिभाषित करता है 'भा' और 'रत' का अर्थ हैं निरंतरता लगा हुआ। अर्थात् भारत शब्द का शाब्दिक अर्थ यह हुआ कि भारत ज्ञान में वर्ष भर रत है जहां ज्ञान को प्राप्त करने के लिए चारों दिशाओं में ऐसे शिक्षा की संस्थाएं थी जहां से शिक्षा प्राप्त कर निकलने वाले विज्ञ विद्यार्थी चारों दिशाओं से निकलने वाले सूर्य की संज्ञा से प्रतिष्ठित होते थे।

            एक समय में शिक्षा में उपाधि प्राप्त शिष्यों का समाज में जो सम्मान होता था उसके पीछे उनकी 25 वर्ष की आयु तक त्याग तप और एकाग्रता पूर्वक ज्ञान प्राप्त करने के कारण उन्हें मिलता था। हर युग में युवा सदैव एक शक्ति के रूप में माने गए हैं; उनके पास ज्ञान बल, बुद्धि बल, सदाचार, चरित्र का उच्च कोटि का बल था जिसके कारण स्वत: वे परिवार, समाज और राष्ट्र के सजग प्रहरी माने गए। परिवार में बच्चों और बुजुर्गों बड़ों के सम्मान और सुरक्षा की जिम्मेदारी युवाओं के द्वारा ही निभाई जाती थी। सामाजिक व्याख्याओं और देश की उन्नति, प्रगति में उन प्रतिभाशाली युवाओं का ही योगदान होता था। हर बदलते समय में जो महा परिवर्तन हुए उन्हें युवाओं ने संचालित किया है स्वामी विवेकानंद अपने युवावस्था में ही उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया उसके एवज में अपनी दिव्य दृष्टि से देखते हुए, भारत के भविष्य के युवाओं को यह संदेश दिया है

'' उत्तिष्ठत: जागृत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्या दुर्ग पथस्तत्कवयो वदंति।। '' 

अर्थात हे मनुष्यों! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों के पास जाकर उसे परब्रह्म परमेश्वर को जानो; प्रत्येक क्योंकि ज्ञानीजन उस अध्यात्म पथ को छुरे की धार पर चलने के समान दुर्गम बताते हैं। शिकागो के धर्म सम्मेलन में भाइयों और बहिनों के संवेदनशील आत्मीय उद्बोधन से अपनी बात की शुरुआत की इस संबोधन मात्र ने हजारों के हृदय तक पहुंच कर तालियों  की गड़गड़ाहट से वातावरण को गुंजा दिया। यह स्पर्श उन भावो का था, जो विवेकानंद की आत्मा से निकले। भारतीय संस्कृति यूं ही नहीं ''वसुधैव कुटुंबकम्'’ का संदेश देता है, भारत में ही भाई-बहन का रिश्ता राखी के धागों में सजता है और भारत की धरती मां है जिसकी गोद में संस्कृति, परंपराये, मर्यादाएं और रिश्ते फलते-फूलते मुस्कुराते हैं। स्वामी विवेकानंद ने युवावस्था में भारत की शक्ति बने और जाने से पूर्व युवाओं को ही भारत की रक्षा, पोषण, संरक्षण का संदेश देकर गए।

            हमारे देश में 21वी सदी के भारत में एक ऐसे पूर्ण समर्पित महामहिम राष्ट्रपति भी हुए हैं जिन्होंने अपना समग्र जीवन ही ज्ञान की ऐसी पुस्तक बना दी जिसके हर पन्ने पर जीवन का विस्तार, विकास और सफलता का राज छुपा है। आवश्यकता उन्हें पढ़ना और पढ़कर समझने में हैं । बच्चों से लेकर युवाओं तक अपने जीवन के हर अनुभव से युवाओं में चेतना जगाने का हर अवसर उन्होंने कामयाब बनाया। विज्ञान की पुरोधा मिसाइल मैन डॉक्टर अब्दुल कलाम युवाओं के बीच अपनी बात रखते हुए ही अंतिम सांस ली। यह विरासत युवाओं के लिए ही था। आज पूरे विश्व में भारत वर्ष को युवा भारत के नाम से ही जाना जाता है। वर्तमान युग, विज्ञान और आधुनिक प्रयोगों का युग है। हर क्षेत्र में पूरे विश्व ने असीमित विस्तार कर, आत्मनिर्भर सभ्य का रुतबा हासिल किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि विकास तेजी से हुआ है, कोई क्षेत्र अथवा पक्ष छूटा नहीं है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक हर पक्ष हमारा मजबूत हुआ है। यह सब तो समय के अनुरूप ठीक हो रहा है परंतु ध्यान आकर्षित करने वाला विषय तो यह अनुभव हो रहा है कि हम तेजी से आगे बढ़ने के चक्कर में अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति ने आकर्षित किया है।

            क्या!! यह उचित है कि हम संस्कृति और मूल्यों के बिना अपनी पहचान कायम रख सकेंगे। एक वृक्ष और संस्कृति दोनों ही पोषक हैं। वृक्ष की जड़ों में जब मर्यादा और संस्कारों का पवित्र जल सिंचन होता है तभी एक जीवन और एक परिवार परवान चढ़ता है। हम अपने मूल्यों को तेजी से खोते जा रहे हैं हमारे युवाओं से देश को बहुत सारी अपेक्षाएं हैं। अगर युवा (बेटा बेटियों) जागरूक होंगे तो देश को जगाने में कामयाब होंगे हमारे युवा बेटा हो या बेटी समान रूप से प्रतिष्ठित हैं उन्हें शिक्षा, संस्कार और मर्यादा की भी शिक्षा बराबर मिलना चाहिए। चरित्र निर्माण बेटा या बेटी हो दोनों को बराबर बनना जरूरी है। अनुशासन और चरित्र का निर्माण युवाओं में कूट-कूट कर भरा होना जरूरी है। उनकी शिक्षा का प्रतिबिंब उनका चरित्र ही है। बाल्यावस्था से ही माता-पिता और पूरे परिवार की यह सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह बात सबसे महत्वपूर्ण है कि युवा भारत कैसा हो जिससे राष्ट्र श्रेष्ठ बने। क्या!! हम उन बालकों के नाम याद कर सकते हैं?? शकुंतला पुत्र 'भरत' हिरण्यकश्यप पुत्र 'प्रहलाद' दशरथ पुत्र 'राम'। बालपन में संस्कार व अनुशासन मर्यादा का पाठ पढ़ा। भरत के नाम पर भारत देश का नाम पड़ा, भक्ति की शक्ति को प्रमाणित किसी प्रहलाद ने और अपने चरित्र से मर्यादा का पाठ दिया, राम ने माता, सीता, सावित्री, अनुसूया, लक्ष्मीबाई सभी युवा शक्ति के सबसे उत्कृष्टतम उदाहरण हैं । भारतीय समाज में जनमानस इन सभी युवाओं को सम्मान और मर्यादा से स्मरण करता है। उनकी शिक्षाओं का अनुसरण भी करता है। धन संपत्ति के जाने से कुछ नुकसान नहीं होता अगर अस्वस्थ हुए तो हम कुछ नुकसान उठाते हैं, खोते हैं, परंतु यदि हम चरित्र खो देते हैं तो हम अपना सर्वस्व खो देते हैं, इसलिए आज हमारे पूर्वजों का यह संदेश हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारी संस्कृति की देन है कि हम भारतीय चित्र की नहीं चरित्र की पूजा करते हैं। चरित्र व्यक्ति और समाज की रीढ़ है। जिसके बिना शरीर हो या समाज विकृत दिखाई देता है।

            स्वस्थ दिनचर्या, उचित आहार, व्यायाम, सैर, प्राणायाम योग आदि नियमों को अपनी जीवन चर्या में शामिल करके, हमारे युवाओं को अपनी जीवन शैली में सुधार करके, अपने स्वयं के शारीरिक मानसिक शक्तियों का विकास करना चाहिए। एक कुशल श्रेष्ठ नागरिक बनना जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। उत्तम स्वभाव, उज्जवल भविष्य बनाने की क्षमता आपके भीतर है उन्हें जगाकर स्वयंभू समर्थवान बनें। आजकल के युवाओं से देश अपेक्षा करता है कि समाज में फैली बुराइयों को दूर करने में उन्हें बढ़-चढ़कर सहयोग देना चाहिए। सत्य बोलना, निष्ठा से काम करना, बड़ों का सम्मान करना ताकि वे ईमानदारी के रास्तों से ही कामयाब बनने का प्रयास कर सकें।

            हमारे युवाओं के सामने सबसे बड़ी तकलीफ देह चुनौतियां जो सामने है वे संभवत: जीवन की सबसे बड़ी कसौटी हो सकती है। दहेज प्रथा और वृद्धाश्रम। हां ये बड़ी ऐसी जिम्मेदारियां हैं अगर आप दहेज लेते हो अथवा देते हों  तो आप परिवार की दो महिलाओं के साथ न्याय-अन्याय की दुविधा में पड़ जाते हो और पूरा जीवन कशमकश में बीतता है। एक तरफ पत्नी और दूसरी तरफ मां है अगर आप विवाह संस्कार और माता-पिता के साथ निर्वाह, संस्कार में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाए तो जीवन असफल संवाद बनकर रह जाता है। हिंसा को ही बढ़ावा मिलता है। ऐसी विपरीत परिस्थिति का सामना युवा अपनी अंतस की प्रबल ऊर्जा से कर सकता है। यह ऊर्जा उसे सकारात्मक शुभ विचारों से ही उसे मिल सकती है। पुरुष सदस्य होने की नाते यह जिम्मेदारी उसकी है कि वह न्याय करे, परिस्थितियों को अन्याय के हवाले न करें। अक्सर ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता है इसी के कारण एक पक्षीय निर्णय अनेक समस्याओं को मुखर कर देती है। युवा शक्ति के कंधों पर सामाजिक सौहार्द,  सद्भावना व सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा का भार है। इसलिए समाज राष्ट्र और समूचा मानव सभ्यता आशा भरी निगाहों से युवाओं की ओर देख रहा है।

            भारत गर्व करता है कि अपने युवा भारत होने पर देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है इनके प्रति देश ऐसे संसाधनों को विकसित करें, प्रोत्साहित करें जिससे युवाओं में संस्कार, शिक्षा, नैतिक, मानवीय मूल्यों के साथ ज्ञानात्मक प्रतिभा का विकास हो सके। उन्हें समुचित शिक्षा के अवसर मिले उनकी प्रतिभा का दोहन कर सके ऐसे उपयोगी, रचनात्मक, आकर्षक अवसर भी उन्हें मुहैया कराए। यह विडंबना होगी कि देश के युवाओं को नशे, जुआ, ड्रग्स के अंधेरों में ढकेला जाए।

            निष्कर्ष यह इंगित करता हैं कि भारतमाता का मान बढ़ाने के लिए भारतवर्ष की प्रतिष्ठा निष्कलंकित बनाने के लिए, परिवार, संप्रदाय, समाज और देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। जब तक युवाधन सुरक्षित संरक्षित संस्कारित, सुशिक्षित, पूर्ण विकसित व्यक्तित्व नहीं होगा तब तक भारत, श्रेष्ठ भारत नहीं बनेगा।