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कुदरत की पाठशाला - अंतस की कलम से

 

जीवन एक पद्य भी है एक गद्य भी हम जब भी इसकी व्याख्या करने बैठते हैं तो हम मुख्य चार बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, विशेष अगर हम इन संकेतों के आधार पर उद्धरित अंश को विश्लेषित करते हैं , तो हमारे सामने लेखक अथवा कवि विशेष की छवि होती है हम अंशों के आधार पर कवि अथवा लेखक के मनोभावको विश्लेषित करते हैं तब ही जाकर भाव अभिव्यक्त होता हैं , और अंश में प्रतिपादित शिक्षा को हम आत्मसातकर पाते हैं। जीवन अगर गद्य है तब भी औरअगर पद्य है तब भी हम यह जान ले कि कवि अथवा लेखक वह निराकारपरमात्मा ही है !

 कवितुलसीदास जी के अनुसार - 

“बिनुपग चले, सुने बिनुकाना

“बिनुकर करम करे विधिनाना”

इस आधार पर हमें यह जानना है कि ईश्वर ने मानव देह को पांच तत्वों से बना दिया है। 

यही पांच तत्व -  धरती, आकाश, वायु जल, अग्नियह कुदरत है , और कहा गया है कि कुदरत ही मनुष्य की प्रथम गुरु है |

अगर हम इस कुदरत की पाठशाला में भली-भांति प्रशिक्षण ले लेते हैं तो हमारा जीवन बहुत सहज,

सरल, सुख समृद्धि पूर्ण हो जाता है ऐसा भी कहा जाता है कि जो मनुष्य कुदरत के कानून को मानते हैं।

उन्हें दुनियांवी कानूनो को मानना कोई मुश्किल नहीं लगता और ना ही यह इंसानी कानून उनका कुछ

अहितकर सकते हैं यह सच है कुदरत के जिन तत्वों से शरीर बना है उस पाठशाला में प्रशिक्षण प्राप्त करना कोई बुरी बात नहीं है। 

यह बात इस परनिर्भर करती है कि आप परमात्मा के द्वारा रचित इस जीवन प्रसंग की कैसी व्याख्या करते हैं यह आप पर निर्भर है |

कुदरत की पाठशाला में कोई शुल्क अथवा फीस नहीं लगती यहां तो बालक के सर्वांगीण विकास

का प्रयास होता है, उसके चरित्र का निर्माण होता है, क्योंकि महत्व मानव चित्र का नहीं वरन चरित्र का है |

यही बात संस्कृति भी समझाती है; इस पाठशाला में मनुष्य के रीढ़ की हड्डी यानि चरित्र को इतना मजबूत बनाया जाता है कि वह शरीर अपने अस्तित्व को इस संसार में एक पहचान दे सके। 

दरअसल अंग्रेजी में यह बहुत प्रचलित है- 

If you lost health

something is lost

It you lost money

Nothing is lost but

you lost your character

everything is you lost.

जीवन में धन और स्वास्थ्य से बढ़कर है हमारा चरित्र , इसलिए हमें सजगता से चरित्र की ओर
ध्यान देना चाहिए। धरती पर पैर जमाकर हमें आसमान की नई ऊचाइयां छूना चाहिए, नदी की धारा
के प्रवाह की तरह निरंतर कर्मशील बनकर चुनौतियों के विपरीत जाकर पर्वतों की चट्टान की तरह अडिग, दृढ़ होकर अपना लक्ष्य साधना है। समुद्र की गहराई और गंभीरता धारव कर अपने उद्देश्य को पाना है।
अपने जीवन को सफल बनाने के लिए वायु की गति से आगे बढ़ना है। संसार रूपी घने वनों में छिपे हिंसक तत्वों से अपनी सुरक्षा भी करनी है। नदी, पहाड़, समुद्र, आकाश, जंगल, जमीन यह सभी प्रकृति की शक्ति चिन्ह है जो एक चरित्रवान मनुष्य को प्रेरणा देते
हैं ।ऐसी शक्तियों के होते हुए भी यदि हम इन रहस्यों को न समझ पाए तो हमारा दुर्भाग्य है। भाग्य ईश्वर नहीं बनाता उसे तो भाग्यवीर मनुष्य स्वयं बनाता है।

निष्कर्ष तो यही जाता रहा हैं यही संदेश दोहरा
रहा है कि क्‍यों ना हम सब मिलकर कुदरत की
पाठशाला में आओं सीखे जीवन जीना |