news-details

भारतीय पुरातन चिन्न कलाएँ

: पी, अंजलि वर्मा

मित्रों जैसा कि आप जानते है कि, हमारी अतंसमणि पत्रिका ने हमारे को छूने का प्रयास किया है। यह एक प्रेरणादायी पत्रिका है जिसने जीवन मूल्यों पर आधारित और भारतीय संस्कृति के सर्वोत्तम गुणों को उजागर करने का पूरा प्रयास किया है।

इन्हीं प्रयासों की श्रृंखला में एक और नये स्तंभ को पत्रिका में स्थान दिया गया है।" भारतीय पुरातन चित्र कलाएं" इस संतंभ के माध्यम से हम प्रयास करेंगे कि भारत की समृद्ध और पुरातन सभी चित्रकलाओं को सम्मिलित किया जाये। इस बार हम केरला की एक पुरातन चित्रकला जिसे 'भित्ति चित्र कला' और आसान शब्दों में 'केरला म्यूरल' कहते हैं सम्मिलित करने जा रहे है। केरल, मालाबार समुद्री सीमा पर स्थित दक्षिण भारतीय राज्य है। केरल जनसंख्या के हिसाब से भारत के 13वा सबसे बड़ा राज्य है। राज्य को 14 जिलों में विभाजित किया गया है। और थिरुवनंधापुरम राज्य की राजधानी है। केरल की सबसे पुरानी और प्रसिद्ध चित्रकला है। 'भित्ति चित्रकला'। केरल के ज्यादातर प्रमुख भित्ति चित्र 15वी से 19वीं शताब्दी के बीच बनाए गए है। इसमें इस्तेमाल की गई तकनीक और सौदर्य शास्त्रीय मानकों के मामले में वे उत्कृष्टता के प्रतीक है। भित्ति चित्र एक कलाकृति होती है जो सीधे दीवारों, छतों या अन्य किसी स्थायी आधार पृष्ठ पर बनायी जाती है। केरल में 'भित्ति चित्रकला' की शुरुआत अब भी अंधकार में है। और यह भी पता नहीं है कि कब इन चित्रकलाओं ने इन मंदिरों में अपना स्थान बना लिया। जहाँ तक परंपरागत भित्ति चित्रकला का संबंध है, यह केरल की समृद्ध संपदा की झलक देता है। केरल की भित्ति चित्रकला सामान्यतः जीवन पर आधरित चरित्रों को चित्रित करती है और महाकाव्यों के दृश्यों को दर्शाती है। इन चित्रकलाओं के लिए चयनित प्रसंग अधिकतर श्रीकोविल की बाहरी दीवारों पर चित्रित किये जाते है। जिससे यह भक्तों का ध्यान आसानी से आकर्षित कर सके। यह चित्रकारियाँ प्रत्येक मंदिर में अलग- अलग होती है क्योंकि इनकी विषयवस्तु मंदिर में स्थापित मुख्य देवता के ईर्द-गिर्द घुमने वाली घटनाओं पर आधारित होते है,

भित्ति चित्रकारी में प्रयुक्त सामग्री जैसे- रंग, ब्रश, गोंद, आदि सभी विभिन्न प्रकार के खनिजों और पौधों आदि प्राकृतिक स्रोत्रों से जुटाई जाती थी। केरल के मिस्ति चित्रों में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख रंग केसर-लाल, केसर- पीला, हरा, लाल, काला सफेद, नीला, पीला और सुनहरा पीला है। प्रत्येक भित्ति चित्र अपनी कला के प्राप्ति कलाकारों के गहन समर्पण का प्रतीक है। केरल के शानदार मंदिर और महल देखने लायक है, जिसमें प्राचीन हिन्दू देवी- देवताओ के वृतांत प्रस्तुत किए गए हैं। जीवन भर के लिए एक विस्मरणीय स्मृति के रूप में केरल के 'भित्तिचित्र' प्राकृतिक सौंदर्य और ललित्य, भव्यवता और सरलता तथा पवित्र आस्था के प्रतीक है। यही विनम्रता वह चीज है, जिसने इस कला को सभ्यता और समय के थपेड़ों से बचाकर आजतक सुरक्षित रखा है। केरल की प्राचीन चित्रकला का मूल झाली गुफा चित्रकारी और उत्कीर्णन में निहित है। प्राचीन भित्तिचित्र मंदिर जैसे उपासना स्थलों पर प्रमुख रूप से दिखाई पड़ते है। आनुष्ठानिक कला कथायें सुना, जिसमें फर्श पर रंग-बिरंगे पाउडर की मदद से देवी-देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं, केरल की चित्रकारी की एक लोक चित्रकला तकनीकों की खास विशेषताएं इन अनुष्ठानिक कला रूपों में देखी जा सकती है। आधुनिक कला शैलियाँ आधुनिक भारतीय कला के प्रणेता कहे जाने वाले राजा रवि वर्मा के बैटिगन के जाये प्रचलित हुई। केरल के विपुडल आर्ट का इतिहास अन्य सभी कला रूपों के साथ घनिष्ठता से गुंथा हुआ है जो अपनी प्रकृति में प्राथमिक रूप से निष्पादक और आनुष्ठानिक होते है। सामान्य दृश्य संस्कृति के अंतर्गत एक आधुनिक विषय के रूप में स्थापित होने तक, केरल में दृश्य कला समाज के धार्मिक और समाजिक ताने-बाने का अंग है जो प्रायः अपने लिए किसी अलग स्थिति की मांग नहीं करती।

केरल की प्राचीन चित्रकला का मूल इसकी गुफा चित्रकारी और उत्कीर्णन में निहित है। प्राचीन भित्तिचित मंदिर जैसे उपासना स्थलों पर प्रमुख रूप से दिखाई पड़ते है। आनुष्ठानिक कला 9 कलामेजुत्त, जिसमें फर्श पर रंगबिरंगे पाउडर की मदद से देवी देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं, केरल की चित्रकारी की एक अन्य पद्धति है। लोक चित्रकला तकनीकों की खास विशेषताएं इन आनुष्ठानिक कला रूपों में देखी जा सकती है। आधुनिक कला शैलियां आधुनिक भारतीय कला के प्रणेता कहे जाने वाले राजा रवि वर्मा के पेंटिंग्स के जरिए प्रचलित हुईं।

कई आधुनिक कलाकार हुए हैं जिनमें शामिल हैं ये प्रसिद्ध नाम : सी राजराजा वर्मा, मंगलाबाई तम्पुराट्टि, के रामवर्माराजा, के माधव मेनन, वी, एस वलियत्तान सी वी बालन नायर, पी, जे, चेरियान, के, सी, एस, पणिक्कर, सी, के, रा, एम, वी, देवन, के, वी, हरिदासन, ए, सी, के, राजा, पी, आई, इटटप, एम, रामन, टी, के, पम्हिनि, पी, गंगाधरन, ए, रामचंद्रन, अक्कित्तम नारायणन और पारिस विश्वनाथन । प्राचीन मूर्तिकला की उत्कृष्टता काष्ठ, पाषाण धातु की मूर्तियों, दीपकों और पात्रों में साफ साफ दिखाई पड़ती है। यद्यपि बेहतरीन काष्ठ मूर्तियां और प्रतिमाएं मंदिरों में दिखाई पड़ती हैं, प्राचीन मूर्ति कला के कौशल प्राचीन चर्चों में दिखाई पड़ते हैं।